Monday, October 24, 2011
Friday, October 21, 2011
धनतेरस 24 अक्तूबर, 2011 शुभ मुहूर्त
धनतेरस 24 अक्तूबर, 2011 शुभ मुहूर्त
धनतेरस 24 अक्तूबर, 2011 शुभ मुहूर्त
Dhanteras 24 Oct, 2011 Auspicious Time
धन तेरस, सोमवार, कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष 24 अक्तूबर, 2011
उत्तरी भारत में कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास से मनाया जाता है. देव धनवन्तरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी जी और धन के देवता कुबेर के पूजन की परम्परा है. इस दिन कुबेर के अलावा यमदेव को भी दीपदान किया जाता है. इस दि...न यमदेव की पूजा करने के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन यमदेव की पूजा करने से घर में असमय मृ्त्यु का भय नहीं रहता है. धन त्रयोदशी के दिन यमदेव की पूजा करने के बाद घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर मुख वाला दीपक पूरी रात्रि जलाना चाहिए. इस दीपक में कुछ पैसा व कौडी भी डाली जाती है.
धनतेरस का महत्व
Significance of Dhanteras
साथ ही इस दिन नये उपहार, सिक्का, बर्तन व गहनों की खरीदारी करना शुभ रहता है. शुभ मुहूर्त समय में पूजन करने के साथ सात धान्यों की पूजा की जाती है. सात धान्य गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर है. सात धान्यों के साथ ही पूजन सामग्री में विशेष रुप से स्वर्णपुष्पा के पुष्प से भगवती का पूजन करना लाभकारी रहता है. इस दिन पूजा में भोग लगाने के लिये नैवेद्ध के रुप में श्वेत मिष्ठान्न का प्रयोग किया जाता है. साथ ही इस दिन स्थिर लक्ष्मी का पूजन करने का विशेष महत्व है.
धन त्रयोदशी के दिन देव धनवंतरी देव का जन्म हुआ था. धनवंतरी देव, देवताओं के चिकित्सकों के देव है. यही कारण है कि इस दिन चिकित्सा जगत में बडी-बडी योजनाएं प्रारम्भ की जाती है. धनतेरस के दिन चांदी खरीदना शुभ रहता है.
धन तेरस पूजा मुहूर्त
Auspicious Time for Dhanteras Puja
1. प्रदोष काल:-
सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 की अवधि को प्रदोषकाल के नाम से जाना जाता है. प्रदोषकाल में दीपदान व लक्ष्मी पूजन करना शुभ रहता है.
दिल्ली में 24 अक्तूबर 2011 सूर्यास्त समय सायं 17:44 से 20.:08 तक रहेगा. इस समय अवधि में स्थिर लग्न 19.05 से लेकर 20.08 के मध्य वृ्षभ लग्न रहेगा. मुहुर्त समय में होने के कारण घर-परिवार में स्थायी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.
2. चौघाडिया मुहूर्त:-
24 अक्तूबर 2011, सोमवार
अमृ्त काल मुहूर्त 06:10 से 07:37 तक सुबह
शुभ काल 09:04 से 10:32 तक सुबह
चल काल 17:49 से लेकर 19:22 तक
लाभ काल 22:27 से लेकर 24.00 तक
उपरोक्त में लाभ समय में पूजन करना लाभों में वृ्द्धि करता है. शुभ काल मुहूर्त की शुभता से धन, स्वास्थय व आयु में शुभता आती है. सबसे अधिक शुभ अमृ्त काल में पूजा करने का होता है.
सांय काल में शुभ महूर्त
Auspicious Time During the Evening
तक का समय धन तेरस की पूजा के लिये विशेष शुभ रहेगा.
19:05 से 20.:08 प्रदोष काल स्थिर लग्न युक्त
धनतेरस में क्या खरीदें
What to Buy During Dhanteras
लक्ष्मी जी व गणेश जी की चांदी की प्रतिमाओं को इस दिन घर लाना, घर- कार्यालय,. व्यापारिक संस्थाओं में धन, सफलता व उन्नति को बढाता है.
इस दिन भगवान धनवन्तरी समुद्र से कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिये इस दिन खास तौर से बर्तनों की खरीदारी की जाती है. इस दिन बर्तन, चांदी खरीदने से इनमें 13 गुणा वृ्द्धि होने की संभावना होती है. इसके साथ ही इस दिन सूखे धनिया के बीज खरीद कर घर में रखना भी परिवार की धन संपदा में वृ्द्धि करता है. दीपावली के दिन इन बीजों को बाग/ खेतों में लागाया जाता है ये बीज व्यक्ति की उन्नति व धन वृ्द्धि के प्रतीक होते है.
धन तेरस पूजन
Dhanteras Puja
धन तेरस की पूजा शुभ मुहुर्त में करनी चाहिए. सबसे पहले तेरह दीपक जला कर तिजोरी में कुबेर का पूजन करना चाहिए. देव कुबेर का ध्यान करते हुए, भगवान कुबेर को फूल चढाएं और ध्यान करें, और कहें, कि हे श्रेष्ठ विमान पर विराजमान रहने वाले, गरूडमणि के समान आभावाले, दोनों हाथों में गदा व वर धारण करने वाले, सिर पर श्रेष्ठ मुकुट से अलंकृ्त शरीर वाले, भगवान शिव के प्रिय मित्र देव कुबेर का मैं ध्यान करता हूँ.
इसके बाद धूप, दीप, नैवैद्ध से पूजन करें. और निम्न मंत्र का जाप करें.
'यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये
धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा ।'
धनतेरस की कथा
Story of Dhanteras
एक किवदन्ती के अनुसार एक राज्य में एक राजा था, कई वर्षों तक प्रतिक्षा करने के बाद, उसके यहां पुत्र संतान कि प्राप्ति हुई. राजा के पुत्र के बारे में किसी ज्योतिषी ने यह कहा कि, बालक का विवाह जिस दिन भी होगा, उसके चार दिन बाद ही इसकी मृ्त्यु हो जायेगी.
ज्योतिषी की यह बात सुनकर राजा को बेहद दु:ख हुआ, ओर ऎसी घटना से बचने के लिये उसने राजकुमार को ऎसी जगह पर भेज दिया, जहां आस-पास कोई स्त्री न रहती हो, एक दिन वहां से एक राजकुमारी गुजरी, राजकुमार और राजकुमारी दोनों ने एक दूसरे को देखा, दोनों एक दूसरे को देख कर मोहित हो गये, और उन्होने आपस में विवाह कर लिया.
ज्योतिषी की भविष्यवाणी के अनुसार ठीक चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचें. यमदूत को देख कर राजकुमार की पत्नी विलाप करने लगी. यह देख यमदूत ने यमराज से विनती की और कहा की इसके प्राण बचाने का कोई उपाय बताईयें. इस पर यमराज ने कहा की जो प्राणी कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात में जो प्राणी मेरा पूजन करके दीप माला से दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाला दीपक जलायेगा, उसे कभी अकाल मृ्त्यु का भय नहीं रहेगा. तभी से इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाये जाते है.
धनतेरस 24 अक्तूबर, 2011 शुभ मुहूर्त
Dhanteras 24 Oct, 2011 Auspicious Time
धन तेरस, सोमवार, कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष 24 अक्तूबर, 2011
उत्तरी भारत में कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास से मनाया जाता है. देव धनवन्तरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी जी और धन के देवता कुबेर के पूजन की परम्परा है. इस दिन कुबेर के अलावा यमदेव को भी दीपदान किया जाता है. इस दि...न यमदेव की पूजा करने के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन यमदेव की पूजा करने से घर में असमय मृ्त्यु का भय नहीं रहता है. धन त्रयोदशी के दिन यमदेव की पूजा करने के बाद घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर मुख वाला दीपक पूरी रात्रि जलाना चाहिए. इस दीपक में कुछ पैसा व कौडी भी डाली जाती है.
धनतेरस का महत्व
Significance of Dhanteras
साथ ही इस दिन नये उपहार, सिक्का, बर्तन व गहनों की खरीदारी करना शुभ रहता है. शुभ मुहूर्त समय में पूजन करने के साथ सात धान्यों की पूजा की जाती है. सात धान्य गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर है. सात धान्यों के साथ ही पूजन सामग्री में विशेष रुप से स्वर्णपुष्पा के पुष्प से भगवती का पूजन करना लाभकारी रहता है. इस दिन पूजा में भोग लगाने के लिये नैवेद्ध के रुप में श्वेत मिष्ठान्न का प्रयोग किया जाता है. साथ ही इस दिन स्थिर लक्ष्मी का पूजन करने का विशेष महत्व है.
धन त्रयोदशी के दिन देव धनवंतरी देव का जन्म हुआ था. धनवंतरी देव, देवताओं के चिकित्सकों के देव है. यही कारण है कि इस दिन चिकित्सा जगत में बडी-बडी योजनाएं प्रारम्भ की जाती है. धनतेरस के दिन चांदी खरीदना शुभ रहता है.
धन तेरस पूजा मुहूर्त
Auspicious Time for Dhanteras Puja
1. प्रदोष काल:-
सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 की अवधि को प्रदोषकाल के नाम से जाना जाता है. प्रदोषकाल में दीपदान व लक्ष्मी पूजन करना शुभ रहता है.
दिल्ली में 24 अक्तूबर 2011 सूर्यास्त समय सायं 17:44 से 20.:08 तक रहेगा. इस समय अवधि में स्थिर लग्न 19.05 से लेकर 20.08 के मध्य वृ्षभ लग्न रहेगा. मुहुर्त समय में होने के कारण घर-परिवार में स्थायी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.
2. चौघाडिया मुहूर्त:-
24 अक्तूबर 2011, सोमवार
अमृ्त काल मुहूर्त 06:10 से 07:37 तक सुबह
शुभ काल 09:04 से 10:32 तक सुबह
चल काल 17:49 से लेकर 19:22 तक
लाभ काल 22:27 से लेकर 24.00 तक
उपरोक्त में लाभ समय में पूजन करना लाभों में वृ्द्धि करता है. शुभ काल मुहूर्त की शुभता से धन, स्वास्थय व आयु में शुभता आती है. सबसे अधिक शुभ अमृ्त काल में पूजा करने का होता है.
सांय काल में शुभ महूर्त
Auspicious Time During the Evening
तक का समय धन तेरस की पूजा के लिये विशेष शुभ रहेगा.
19:05 से 20.:08 प्रदोष काल स्थिर लग्न युक्त
धनतेरस में क्या खरीदें
What to Buy During Dhanteras
लक्ष्मी जी व गणेश जी की चांदी की प्रतिमाओं को इस दिन घर लाना, घर- कार्यालय,. व्यापारिक संस्थाओं में धन, सफलता व उन्नति को बढाता है.
इस दिन भगवान धनवन्तरी समुद्र से कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिये इस दिन खास तौर से बर्तनों की खरीदारी की जाती है. इस दिन बर्तन, चांदी खरीदने से इनमें 13 गुणा वृ्द्धि होने की संभावना होती है. इसके साथ ही इस दिन सूखे धनिया के बीज खरीद कर घर में रखना भी परिवार की धन संपदा में वृ्द्धि करता है. दीपावली के दिन इन बीजों को बाग/ खेतों में लागाया जाता है ये बीज व्यक्ति की उन्नति व धन वृ्द्धि के प्रतीक होते है.
धन तेरस पूजन
Dhanteras Puja
धन तेरस की पूजा शुभ मुहुर्त में करनी चाहिए. सबसे पहले तेरह दीपक जला कर तिजोरी में कुबेर का पूजन करना चाहिए. देव कुबेर का ध्यान करते हुए, भगवान कुबेर को फूल चढाएं और ध्यान करें, और कहें, कि हे श्रेष्ठ विमान पर विराजमान रहने वाले, गरूडमणि के समान आभावाले, दोनों हाथों में गदा व वर धारण करने वाले, सिर पर श्रेष्ठ मुकुट से अलंकृ्त शरीर वाले, भगवान शिव के प्रिय मित्र देव कुबेर का मैं ध्यान करता हूँ.
इसके बाद धूप, दीप, नैवैद्ध से पूजन करें. और निम्न मंत्र का जाप करें.
'यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये
धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा ।'
धनतेरस की कथा
Story of Dhanteras
एक किवदन्ती के अनुसार एक राज्य में एक राजा था, कई वर्षों तक प्रतिक्षा करने के बाद, उसके यहां पुत्र संतान कि प्राप्ति हुई. राजा के पुत्र के बारे में किसी ज्योतिषी ने यह कहा कि, बालक का विवाह जिस दिन भी होगा, उसके चार दिन बाद ही इसकी मृ्त्यु हो जायेगी.
ज्योतिषी की यह बात सुनकर राजा को बेहद दु:ख हुआ, ओर ऎसी घटना से बचने के लिये उसने राजकुमार को ऎसी जगह पर भेज दिया, जहां आस-पास कोई स्त्री न रहती हो, एक दिन वहां से एक राजकुमारी गुजरी, राजकुमार और राजकुमारी दोनों ने एक दूसरे को देखा, दोनों एक दूसरे को देख कर मोहित हो गये, और उन्होने आपस में विवाह कर लिया.
ज्योतिषी की भविष्यवाणी के अनुसार ठीक चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचें. यमदूत को देख कर राजकुमार की पत्नी विलाप करने लगी. यह देख यमदूत ने यमराज से विनती की और कहा की इसके प्राण बचाने का कोई उपाय बताईयें. इस पर यमराज ने कहा की जो प्राणी कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात में जो प्राणी मेरा पूजन करके दीप माला से दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाला दीपक जलायेगा, उसे कभी अकाल मृ्त्यु का भय नहीं रहेगा. तभी से इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाये जाते है.
Thursday, April 22, 2010
दिनांक ११ ०४ २०१० रविवार को श्री अखिल भारतीय श्री ब्राह्मण स्वर्णकार महासभा की कार्यकारिणी की बैठक संपन्न हुई । इस बैठक के आयोजन की व्यवस्था रतलाम निवासी श्रो मान जगदीशचंद्र जी एवं उनके परिवार ने जगदीश भवन बाजना बस स्टेंड रतलाम पर की । व्यवस्था बहुत ही सुन्दर थी इसके लिए महासभा आपका धन्यवाद प्रेषित करती हे ।
इस बैठक में मुख्य अतिथि ऐ के हेमकार साहब (कलेक्टर साहब ) थे आपने समाज को आरक्षित पिछड़ा वर्ग के फायदे बताये और ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने की अपील की और कहा की आपको किसी भी प्रकार की परेशानी हो तो मेरे से संपर्क करे ।
इस बैठक में समाज में शिक्षा पर ज्यादा से ज्यादा जोर देने की बात कही और उच्च शिक्षा के लिए आप अपने बच्चोको प्रेरित करे इस पर विचार किया गया । महासभा ने अखिल भारतीय स्तर पे समाज की जनगणना कराने और युवक युवती परिचय स्मारिका छपवाने पे विचार किया गया ।
समाज में कुरीतियों के निवारण के लिए भी चर्चा की गई । समाज के लोगो (प्रतिक चिन्न ) के लिए भी विचार किया गया ।
श्री ब्राह्मण स्वर्णकार समाज जोबट जिला अलीराजपुर (मध्य प्रदेश ) ने कुरीतियों के निवारण के लिए विशेष कदम उठाकर पुरे भारत के लिए प्रेरणा बने ।
जोबट समाज ने यह घोषणा की :- समाज के किसी भी परिवार में म्रत्यु भोज में मिस्ठान नहीं बनाया
जाएगा और ना ही और कही बाहर जाने पर मिस्ठान ग्रहण करेंगे और स्वर्गवासी की स्मृति में दी जाने वाली लेन भी बंद की जाती हे और न ही कोई सदस्य बाहर से लेन ले कर आयेगा ।
जोबट समाज के इस प्रस्ताव के लिए महासभा ने ताली बजाकर स्वागत किया और कहा की जोबट समाज का यह प्रस्ताव पुरे भारत के समाज के लिए प्रेरणा बनेगा ।
इसी प्रकार प्रेरित होकर श्री जगदीशचंद्र जी रतलाम वालो ने आपने परिवार से सलाह करके यह निर्णय लिया की मेरी (जगदीशचंद्र जी ) म्रत्यु के पश्चात म्रत्युभोज नहीं करे और घोषणा की इसके एवज में में रूपए
इस बैठक में मुख्य अतिथि ऐ के हेमकार साहब (कलेक्टर साहब ) थे आपने समाज को आरक्षित पिछड़ा वर्ग के फायदे बताये और ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने की अपील की और कहा की आपको किसी भी प्रकार की परेशानी हो तो मेरे से संपर्क करे ।
इस बैठक में समाज में शिक्षा पर ज्यादा से ज्यादा जोर देने की बात कही और उच्च शिक्षा के लिए आप अपने बच्चोको प्रेरित करे इस पर विचार किया गया । महासभा ने अखिल भारतीय स्तर पे समाज की जनगणना कराने और युवक युवती परिचय स्मारिका छपवाने पे विचार किया गया ।
समाज में कुरीतियों के निवारण के लिए भी चर्चा की गई । समाज के लोगो (प्रतिक चिन्न ) के लिए भी विचार किया गया ।
श्री ब्राह्मण स्वर्णकार समाज जोबट जिला अलीराजपुर (मध्य प्रदेश ) ने कुरीतियों के निवारण के लिए विशेष कदम उठाकर पुरे भारत के लिए प्रेरणा बने ।
जोबट समाज ने यह घोषणा की :- समाज के किसी भी परिवार में म्रत्यु भोज में मिस्ठान नहीं बनाया
जाएगा और ना ही और कही बाहर जाने पर मिस्ठान ग्रहण करेंगे और स्वर्गवासी की स्मृति में दी जाने वाली लेन भी बंद की जाती हे और न ही कोई सदस्य बाहर से लेन ले कर आयेगा ।
जोबट समाज के इस प्रस्ताव के लिए महासभा ने ताली बजाकर स्वागत किया और कहा की जोबट समाज का यह प्रस्ताव पुरे भारत के समाज के लिए प्रेरणा बनेगा ।
इसी प्रकार प्रेरित होकर श्री जगदीशचंद्र जी रतलाम वालो ने आपने परिवार से सलाह करके यह निर्णय लिया की मेरी (जगदीशचंद्र जी ) म्रत्यु के पश्चात म्रत्युभोज नहीं करे और घोषणा की इसके एवज में में रूपए
Monday, December 14, 2009
Thursday, October 15, 2009
Tuesday, March 24, 2009
समाज
श्री मान ,
सहायक अभियंता (सी एस दी द्वितीय ),
अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड ,
ब्यावर ( राजस्थान )
खाता संख्या :- २२१०-००६०
विषय :- विद्युत दर आधी (१.७५ प्रति यूनिट ) करने बाबत
मान्यवर ,
निवेदन हे की राज्य सरकार के आदेश क्रमांक- जे डी पी वाय सी ई /ऍफ़४ (251) वी टी (।।।) डी / १६०५ दिनांक २३.०८.२००५ के अनुसार मन्दिर के बिजली कनेक्शन पर बिजली दर डोमेस्टिक दर से आधी कर दी गयी हे। उक्त कनेक्शन भी "शिव मन्दिर " के नाम से हे ।
अतः आप से निवेदन आप उक्त कनेक्शन पर भी तुंरत विद्युत दर आधी करने के आदेश प्रदान कर हमें अनुग्रहित करे
राज्य सरकार के आदेशानुसार आप इस हेतु सक्षम अधिकारी हे ।
अग्रिम धन्यवाद सहित ,
भवदीय
अध्यक्ष महामंत्री
शिव मन्दिर
(shri brahaman swarnkaar panchayat sabha, beawar)
सूरज पोल गेट बहार
बिजयनगर रोड
दादा बारी के सामने
सहायक अभियंता (सी एस दी द्वितीय ),
अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड ,
ब्यावर ( राजस्थान )
खाता संख्या :- २२१०-००६०
विषय :- विद्युत दर आधी (१.७५ प्रति यूनिट ) करने बाबत
मान्यवर ,
निवेदन हे की राज्य सरकार के आदेश क्रमांक- जे डी पी वाय सी ई /ऍफ़४ (251) वी टी (।।।) डी / १६०५ दिनांक २३.०८.२००५ के अनुसार मन्दिर के बिजली कनेक्शन पर बिजली दर डोमेस्टिक दर से आधी कर दी गयी हे। उक्त कनेक्शन भी "शिव मन्दिर " के नाम से हे ।
अतः आप से निवेदन आप उक्त कनेक्शन पर भी तुंरत विद्युत दर आधी करने के आदेश प्रदान कर हमें अनुग्रहित करे
राज्य सरकार के आदेशानुसार आप इस हेतु सक्षम अधिकारी हे ।
अग्रिम धन्यवाद सहित ,
भवदीय
अध्यक्ष महामंत्री
शिव मन्दिर
(shri brahaman swarnkaar panchayat sabha, beawar)
सूरज पोल गेट बहार
बिजयनगर रोड
दादा बारी के सामने
Thursday, February 12, 2009
Monday, February 9, 2009
बेटी की माँ
http://veeranchalgatha.blogspot.com
Friday, January 23, 2009
kahanI---betyon ki maa
````` कहानी
सुनार के साम्ने बैठी हूँ1 भारी मन से गहनो की की पोट्लीपर्स मे से निकालती हूँ 1 मन में बहुत कुछ उमड घुमड कर बाहर आने को आतुर है कितना प्यार था इन गहनों से जब किसीशादी व्याह पर पहनती तो देखने वाले देखते रह जाते1 किसी राजकुमारी से कम नही लगती thI खासकर लडियोंवाला हार " कालर सेट '' पहन कर गले से छाती तक झिलमिला उठता 1 मुझे इन्तजार रहता कि कब कोई शादीब्याह हो तो अपने गहने पहनूं 1 मगर आज ये जेवर मेरे हाथ से निकले जा रहे थे 1 दिल में टीस उठी------दबा लेती हूँ----लगता है आगे कभी ब्याह शादियों का इन्तजार नही रहेगा------बनने संवरने की ईच्छा इन गहनों के साथ ही पिघल जायेगी सब हसरतें मर जायेंगी----1 लम्बी साँस खीँचकर भावों को दबाने की कोशिश करती हूँ1 सामने बेटी बैठी है--ेअपने जेवर तुडवा कर उसके लिये जेवर बनवाने हैं---क्या सोचेगी बेटी---माँ क दिल इतना छोटा हैीअब माँ की कौन सी उम्र है जेवर पहनने की----अपराधी की तरह नजरें चुराते हुये सुनार से कहती हूँ'देखो जरा कितना सोना बनता है वो उलट पलट कर देखता है--
'इन में से सारे नग निकालने पडेंगे तभी पता चलेगा'
टीस और गहरी हो जाती है---इतने सुन्दर नग टूट् कर पत्थर हो जायेंगे जो क्भी झिलमिलाते मेरे चेहरे की अभा बढाते थे---गले मे कुछ अटकता है शायद गले को भी ये आभास हो गया हो--बेटी फिर मेरी तरफ देखती है---गले से बडी मुश्किल से आवाज निकलती है--'हाँ निकाल दो"
उसने पहला नग निकाल कर जमीन पर फेंका तो आँखें भर आईं 1 नग की चमक मे स्मृ्तियों के कुछ रेशे दिखाई देने लगते हैं--माँ----पिताजी--कितने चाव से पिताजी ने खुद सुनार के सामने बैठ कर येगहने बनवाये थे--'मेरी बेटी राजकुमारी से भी सुन्दर लगेगी 1 माँ की आँखों मे क्या था उस समय मैं समझ नहीं पाई थी उसकि नम आँखें देख कर यही समझी थी कि बेटी से चिछुडने की पीडा है----ापने सपनो मस्त माँ के मन मे झाँकने की फुरसत कहाँ थी---शायद उसके मन में भी वही सब कुछ था जो मेरे दिल मे --मेरे रोम रोम मे है1 अपनी माँ क दर्द कहाँ जान पाई थी 1 सारी उम्र माँ ने बिना जेवरों के निकाल दी थी1 तीन बेटियों की शादि करते करते वो बूढी हो गयी चेहरे का नूर लुप्त हो गया1 बूढे आदमी की भी कुछ हसरतें होती हैं ब्च्चे कहाँ समझ पाते हैं----मैं भी कहाँ समझ पाई थी----इसी परंपरा मे अब मेरी बारी है फिर दुख कैसा ----माँ ने कभी किसी को आभास नही होने दिया उन्हें शुरू से कानो मे बडे बडे झुम्के पहनने का चाव था मगर छोटी की शादी करते करते सब् गहने बेटियों को डाल दिये 1कभी फिर् बनवाने की हसरत गृ्हस्थी के बोझ तले दब कर रह गयी 1 किसी ने इस हसरत को जानने कि कभी चेष्टा भी नहीं की 1उन के दिल मे गहनों की कितनी अहमियत थी, ये तब जाना जब छोटी के बेटे की शादी पर उसके ससुराल की तरफ से नानी को सोने के टापस मिले उनके चेहरे का नूर देखते हि बनता था जेसे कोई खजाना हाथ लग गया हो1ख्यालों से बाहर निकली तब तक सुनार ने सभी नग निकाल दिये थे1 गहने बेजान पतझड की किसी ठूँठ टहनी की तरह लग रहे थे 1 सुनार कह रहा था कि अभी इसे आग पर गलाना पडेगा तभी पता चलेगा कि कितना सोना है
दिल से धूयाँ स उठा--'हाँ गला दो"--जेसे धूयां गले मे अटक गया हो
साहस साथ छोडता जा रह था1 उसने गैस कि फूकनी जलाई एक छोटी सी कटोरी को गैस पर रखा,उसमे गहने डाल कर फूँकनी से निकलती आग की लपटौं पर गलाने लगा1 लपलपाती लपटौं से सोना धधकने लगा---एक इतिहास जलने लगा था टीस और गहरी होने लगी----जीवन मे अब कुछ नही रह गया--कोई चाव कोई उत्साह नही--एक माँ बाप के अपनी बेटी के लिये देखे सपनों क अन्त उनके चाव मल्हार का अन्त-----मेरे और उनके बीच की उन यादों का अन्त जो उनके मरने के बाद भी मुझे उनका अहसास दिलाती रहती जेवरों को पहन कर जेसे मैं उनकी आत्मा को सुख पहूंचाती होऊँ1भविष्य मे अपने को बिना जेवरों के देखने की कल्पना करती हूँ तो पिता की उदास सूरत आँखों के सामने आ जती है
बेटी की शादी के दृष्य की कलपना करने लगती हूँ----जयमाला की स्टेज के पास मेरी तीनो समधने और मै खडी बातें कर रही हैं1 लोग खाने पीने में मस्त हैं कुछ अभी अभी आने वाले महमान मुझे ढूँढ रहे हैं कुछ दूर खडी औरतों से मेरे बारे मे पूछते हैं1एक औरत पूछती है 'लडकी की माँ कौन सी है?"--दूसरी कहती है'अरे वो जो पल्लू से गले का आर्टिफिशल सैट छूपाने की कोशिश कर रही है1" सभी हँस पडती हैं----समधनो ने शायद सुन लिया था----उनकी नजरें मेरी तरफ उठती हैं-------क्या था उन आखों मे जो मुझे कचोटने लगा हमदर्दी ?-----दया------नही---नही---ये व्यंग था--बेटियाँ जन्मी हैँ तो ऐसा तो होना ही था1 बेटों की माँ होने का नूर उनके चेहरे पर झलकने लगता है---मेरा चेहरा सफेद पड जाता है जैसे मेरे चेहरे की लाली भी उनके चेहरे पर आ गयी हो1 मैं अन्दर ही अन्दर शर्म् से गडी जा रही हूँ--क्यों----क्या बेटियों की माँ होना गुनाह है कि वो अपनेोर् अपनी बेटी के सारे अरमान उन को सौंप दे फिर भी हेय दृ्ष्टी से देखी जाये--- सदियौ से चली आ रही दहेज प्रथा की इस परंपरा से कितनी तकलीफ होती है समधनों को गहनों से सजा कर खुद नंग धडंग हो जाओ---ेआँखेंभर आती हैं------आँसुओं को पोँछ कर कल्पनाओं से बाहर आती हूँ------मैं भी क्या ऊट पटाँग सोचने लग गयी बेटी क्या सोचेगी------ाभी तो देखना है कि कित्ना सोना बनता है शायद मेरे लिये भी कुछ बच जाये
सुनार ने गहने गला कर एक छोटी सि डली मेरे हाथ पर रखी मुठी में भीँच लेती हूँ जेसे अभी बेटी को विदा कर रही होऊँ इतनी सी डली में इतने वर्षों का इतिहास छुपा है------सुनार ने तोला है वो हिसाब लगाता है इसमें बेटी के जेवर पूरे नहीं बन रहे----मेर सेट कहाँ से बनेगा----फिर अभी सास का सेट भी बनवाना है-----एक बार मन मे आया कि सास का सेट रहने देती हूँ------बेटी इतनी बडी अफसर लगी है एक पगार मे सास का सेट बन जायेगा मुझे कौन बनवायेगा अब तो हम दोनो रितायर भी हो गये हैं------ मगर दूसरे पल अपनीभतीजी का चेहरा आँखों के सामने आ जाता है जो दहेज की बली चढ चुकी है अगर मेरी बेटी के साथ भी वैसा ही हो गया तो क्या करूँगी सारी उम्र उसे सास के ताने सुनने पडेंगे --मन को सम्झाती हू अब जीवन बचा ही कितना है----बाद मे भी तो इन बेटियों का ही है एक चाँदी की झाँझर बची थी उस समय भारी घुंघरु वाली झांझ्र का रिवाज था------उसे पहन कर जब मैँ चलती सर घर झन्झना उठता साढे तीन सौ ग्राम की झांझर को पुरखों की निशानी समझ कर रखना चाहती थी मगर पैसे पूरे नहीम पड रहे थे दिल कडा कर उसे भी सुनार को दे दिया देने से पहले झांझ्र को एक बार पाँव मे डालती हूँ बहुत कुछ आँखों मे घूम जाता है वरसों पहले सुनी झंकार आज भी पाँवों मे थिरकन भर देती थी--मगर आज पहन कर भी इसकी आवाज़ बेसुरी सी लगी
सुनार से सारा हिसाब किताब लग कर गहने बनने दे आती हूं उठ कर ख्डी होती हूँ तो पैर लडखडाने लगते हैं जैसे किसी ने जान निकाल ली हो बेटी झट से हाथ थाम लेती है--ड्र जाती हूँ कि कहीं बेटी मन के भाव ना जान लेउससे कह्ती हूँ कि अधिक देर बैठ्ने से पैर सो गये हैं--ाउर क्या कहती कि मेरे सपने इन सामाजिक परंपराओं की भेंट चढ गये है?--------
सुनार सात दिन बाद गहने ले जाने को कहता है ये सात दिन कैसे बीते---बता नहीं सकती ----शायद बाकी बेतीयों की माँयें भी ऐसा ही सोचती हों----अज पहली बार लगता है कि मेरी आधुनिक सोच कि बेटे बेटी मे कोइ फर्क नहीं--चूर चूर हो जती है जो चाहते हैँ कि समाज बदले वो सिर्फ बेटी वाले हैं शायद कुछ अपवाद हों----फिर आज कल लडके वालों ने रस्में कितनी बढा दी हैं कभी रोका कभी मेंहदी कभी् रिंग सेरेमनी फिर शगुन फिर चुनी चुनीचढाई फिर शादी और उसके बाद तो त्यौहारों रीती रिवाजों का कोई अंत हीं नहीं----
मन को सम्झाती हूँ कि पहले बेटियाँ कहती रहती थी माँ ये पहन लो वो पहन लो अब जब बेटियाँ ही चळी गयी हैं तो कौन कहेगा-----मन रीता सा लगने लगता है
सात दिन बाद माँ बेटी फिर सुनार के पास जाती हैं जैसे ही सुनार गहने निकाल कर सामने रखता है उनकी चमक देख कर् बेटी का चेहरा खिल उठता है उन्हें पहन पहन कर देखती है----पैंतीस बरस पहले काइतिहास आँखों के सामने घूम जाता है------मैँ भी तो इतनी खुश थी अपनी माँ के मनोभावों से अनजान ---- आज उसी परम्परा को निभा रही हूँ वही कर रही हूँ जो मेरी माँ ने किया--फिर बेटी केखिले चेहरे को देख कर सब भूल जाती हूँ अपनी प्यारी राज कुमारी सी बेटी से बढ कर तो कोइ खुशी नहीं है--मन को कुछ सकून मिलता है जेवर उठा कर चल पडती हूँ और भगवान से मन ही मन प्रर्थना करने लगती हूँकि मेरी बेटी को सुख देना उसे फिर से ऐसी परम्परायें ना निभानी पडें
निर्मला कपिला
Collecation by :-HEMENDRA SONI (JINDAGI ANMOL)
9414314337
Friday, January 23, 2009
kahanI---betyon ki maa
````` कहानी
सुनार के साम्ने बैठी हूँ1 भारी मन से गहनो की की पोट्लीपर्स मे से निकालती हूँ 1 मन में बहुत कुछ उमड घुमड कर बाहर आने को आतुर है कितना प्यार था इन गहनों से जब किसीशादी व्याह पर पहनती तो देखने वाले देखते रह जाते1 किसी राजकुमारी से कम नही लगती thI खासकर लडियोंवाला हार " कालर सेट '' पहन कर गले से छाती तक झिलमिला उठता 1 मुझे इन्तजार रहता कि कब कोई शादीब्याह हो तो अपने गहने पहनूं 1 मगर आज ये जेवर मेरे हाथ से निकले जा रहे थे 1 दिल में टीस उठी------दबा लेती हूँ----लगता है आगे कभी ब्याह शादियों का इन्तजार नही रहेगा------बनने संवरने की ईच्छा इन गहनों के साथ ही पिघल जायेगी सब हसरतें मर जायेंगी----1 लम्बी साँस खीँचकर भावों को दबाने की कोशिश करती हूँ1 सामने बेटी बैठी है--ेअपने जेवर तुडवा कर उसके लिये जेवर बनवाने हैं---क्या सोचेगी बेटी---माँ क दिल इतना छोटा हैीअब माँ की कौन सी उम्र है जेवर पहनने की----अपराधी की तरह नजरें चुराते हुये सुनार से कहती हूँ'देखो जरा कितना सोना बनता है वो उलट पलट कर देखता है--
'इन में से सारे नग निकालने पडेंगे तभी पता चलेगा'
टीस और गहरी हो जाती है---इतने सुन्दर नग टूट् कर पत्थर हो जायेंगे जो क्भी झिलमिलाते मेरे चेहरे की अभा बढाते थे---गले मे कुछ अटकता है शायद गले को भी ये आभास हो गया हो--बेटी फिर मेरी तरफ देखती है---गले से बडी मुश्किल से आवाज निकलती है--'हाँ निकाल दो"
उसने पहला नग निकाल कर जमीन पर फेंका तो आँखें भर आईं 1 नग की चमक मे स्मृ्तियों के कुछ रेशे दिखाई देने लगते हैं--माँ----पिताजी--कितने चाव से पिताजी ने खुद सुनार के सामने बैठ कर येगहने बनवाये थे--'मेरी बेटी राजकुमारी से भी सुन्दर लगेगी 1 माँ की आँखों मे क्या था उस समय मैं समझ नहीं पाई थी उसकि नम आँखें देख कर यही समझी थी कि बेटी से चिछुडने की पीडा है----ापने सपनो मस्त माँ के मन मे झाँकने की फुरसत कहाँ थी---शायद उसके मन में भी वही सब कुछ था जो मेरे दिल मे --मेरे रोम रोम मे है1 अपनी माँ क दर्द कहाँ जान पाई थी 1 सारी उम्र माँ ने बिना जेवरों के निकाल दी थी1 तीन बेटियों की शादि करते करते वो बूढी हो गयी चेहरे का नूर लुप्त हो गया1 बूढे आदमी की भी कुछ हसरतें होती हैं ब्च्चे कहाँ समझ पाते हैं----मैं भी कहाँ समझ पाई थी----इसी परंपरा मे अब मेरी बारी है फिर दुख कैसा ----माँ ने कभी किसी को आभास नही होने दिया उन्हें शुरू से कानो मे बडे बडे झुम्के पहनने का चाव था मगर छोटी की शादी करते करते सब् गहने बेटियों को डाल दिये 1कभी फिर् बनवाने की हसरत गृ्हस्थी के बोझ तले दब कर रह गयी 1 किसी ने इस हसरत को जानने कि कभी चेष्टा भी नहीं की 1उन के दिल मे गहनों की कितनी अहमियत थी, ये तब जाना जब छोटी के बेटे की शादी पर उसके ससुराल की तरफ से नानी को सोने के टापस मिले उनके चेहरे का नूर देखते हि बनता था जेसे कोई खजाना हाथ लग गया हो1ख्यालों से बाहर निकली तब तक सुनार ने सभी नग निकाल दिये थे1 गहने बेजान पतझड की किसी ठूँठ टहनी की तरह लग रहे थे 1 सुनार कह रहा था कि अभी इसे आग पर गलाना पडेगा तभी पता चलेगा कि कितना सोना है
दिल से धूयाँ स उठा--'हाँ गला दो"--जेसे धूयां गले मे अटक गया हो
साहस साथ छोडता जा रह था1 उसने गैस कि फूकनी जलाई एक छोटी सी कटोरी को गैस पर रखा,उसमे गहने डाल कर फूँकनी से निकलती आग की लपटौं पर गलाने लगा1 लपलपाती लपटौं से सोना धधकने लगा---एक इतिहास जलने लगा था टीस और गहरी होने लगी----जीवन मे अब कुछ नही रह गया--कोई चाव कोई उत्साह नही--एक माँ बाप के अपनी बेटी के लिये देखे सपनों क अन्त उनके चाव मल्हार का अन्त-----मेरे और उनके बीच की उन यादों का अन्त जो उनके मरने के बाद भी मुझे उनका अहसास दिलाती रहती जेवरों को पहन कर जेसे मैं उनकी आत्मा को सुख पहूंचाती होऊँ1भविष्य मे अपने को बिना जेवरों के देखने की कल्पना करती हूँ तो पिता की उदास सूरत आँखों के सामने आ जती है
बेटी की शादी के दृष्य की कलपना करने लगती हूँ----जयमाला की स्टेज के पास मेरी तीनो समधने और मै खडी बातें कर रही हैं1 लोग खाने पीने में मस्त हैं कुछ अभी अभी आने वाले महमान मुझे ढूँढ रहे हैं कुछ दूर खडी औरतों से मेरे बारे मे पूछते हैं1एक औरत पूछती है 'लडकी की माँ कौन सी है?"--दूसरी कहती है'अरे वो जो पल्लू से गले का आर्टिफिशल सैट छूपाने की कोशिश कर रही है1" सभी हँस पडती हैं----समधनो ने शायद सुन लिया था----उनकी नजरें मेरी तरफ उठती हैं-------क्या था उन आखों मे जो मुझे कचोटने लगा हमदर्दी ?-----दया------नही---नही---ये व्यंग था--बेटियाँ जन्मी हैँ तो ऐसा तो होना ही था1 बेटों की माँ होने का नूर उनके चेहरे पर झलकने लगता है---मेरा चेहरा सफेद पड जाता है जैसे मेरे चेहरे की लाली भी उनके चेहरे पर आ गयी हो1 मैं अन्दर ही अन्दर शर्म् से गडी जा रही हूँ--क्यों----क्या बेटियों की माँ होना गुनाह है कि वो अपनेोर् अपनी बेटी के सारे अरमान उन को सौंप दे फिर भी हेय दृ्ष्टी से देखी जाये--- सदियौ से चली आ रही दहेज प्रथा की इस परंपरा से कितनी तकलीफ होती है समधनों को गहनों से सजा कर खुद नंग धडंग हो जाओ---ेआँखेंभर आती हैं------आँसुओं को पोँछ कर कल्पनाओं से बाहर आती हूँ------मैं भी क्या ऊट पटाँग सोचने लग गयी बेटी क्या सोचेगी------ाभी तो देखना है कि कित्ना सोना बनता है शायद मेरे लिये भी कुछ बच जाये
सुनार ने गहने गला कर एक छोटी सि डली मेरे हाथ पर रखी मुठी में भीँच लेती हूँ जेसे अभी बेटी को विदा कर रही होऊँ इतनी सी डली में इतने वर्षों का इतिहास छुपा है------सुनार ने तोला है वो हिसाब लगाता है इसमें बेटी के जेवर पूरे नहीं बन रहे----मेर सेट कहाँ से बनेगा----फिर अभी सास का सेट भी बनवाना है-----एक बार मन मे आया कि सास का सेट रहने देती हूँ------बेटी इतनी बडी अफसर लगी है एक पगार मे सास का सेट बन जायेगा मुझे कौन बनवायेगा अब तो हम दोनो रितायर भी हो गये हैं------ मगर दूसरे पल अपनीभतीजी का चेहरा आँखों के सामने आ जाता है जो दहेज की बली चढ चुकी है अगर मेरी बेटी के साथ भी वैसा ही हो गया तो क्या करूँगी सारी उम्र उसे सास के ताने सुनने पडेंगे --मन को सम्झाती हू अब जीवन बचा ही कितना है----बाद मे भी तो इन बेटियों का ही है एक चाँदी की झाँझर बची थी उस समय भारी घुंघरु वाली झांझ्र का रिवाज था------उसे पहन कर जब मैँ चलती सर घर झन्झना उठता साढे तीन सौ ग्राम की झांझर को पुरखों की निशानी समझ कर रखना चाहती थी मगर पैसे पूरे नहीम पड रहे थे दिल कडा कर उसे भी सुनार को दे दिया देने से पहले झांझ्र को एक बार पाँव मे डालती हूँ बहुत कुछ आँखों मे घूम जाता है वरसों पहले सुनी झंकार आज भी पाँवों मे थिरकन भर देती थी--मगर आज पहन कर भी इसकी आवाज़ बेसुरी सी लगी
सुनार से सारा हिसाब किताब लग कर गहने बनने दे आती हूं उठ कर ख्डी होती हूँ तो पैर लडखडाने लगते हैं जैसे किसी ने जान निकाल ली हो बेटी झट से हाथ थाम लेती है--ड्र जाती हूँ कि कहीं बेटी मन के भाव ना जान लेउससे कह्ती हूँ कि अधिक देर बैठ्ने से पैर सो गये हैं--ाउर क्या कहती कि मेरे सपने इन सामाजिक परंपराओं की भेंट चढ गये है?--------
सुनार सात दिन बाद गहने ले जाने को कहता है ये सात दिन कैसे बीते---बता नहीं सकती ----शायद बाकी बेतीयों की माँयें भी ऐसा ही सोचती हों----अज पहली बार लगता है कि मेरी आधुनिक सोच कि बेटे बेटी मे कोइ फर्क नहीं--चूर चूर हो जती है जो चाहते हैँ कि समाज बदले वो सिर्फ बेटी वाले हैं शायद कुछ अपवाद हों----फिर आज कल लडके वालों ने रस्में कितनी बढा दी हैं कभी रोका कभी मेंहदी कभी् रिंग सेरेमनी फिर शगुन फिर चुनी चुनीचढाई फिर शादी और उसके बाद तो त्यौहारों रीती रिवाजों का कोई अंत हीं नहीं----
मन को सम्झाती हूँ कि पहले बेटियाँ कहती रहती थी माँ ये पहन लो वो पहन लो अब जब बेटियाँ ही चळी गयी हैं तो कौन कहेगा-----मन रीता सा लगने लगता है
सात दिन बाद माँ बेटी फिर सुनार के पास जाती हैं जैसे ही सुनार गहने निकाल कर सामने रखता है उनकी चमक देख कर् बेटी का चेहरा खिल उठता है उन्हें पहन पहन कर देखती है----पैंतीस बरस पहले काइतिहास आँखों के सामने घूम जाता है------मैँ भी तो इतनी खुश थी अपनी माँ के मनोभावों से अनजान ---- आज उसी परम्परा को निभा रही हूँ वही कर रही हूँ जो मेरी माँ ने किया--फिर बेटी केखिले चेहरे को देख कर सब भूल जाती हूँ अपनी प्यारी राज कुमारी सी बेटी से बढ कर तो कोइ खुशी नहीं है--मन को कुछ सकून मिलता है जेवर उठा कर चल पडती हूँ और भगवान से मन ही मन प्रर्थना करने लगती हूँकि मेरी बेटी को सुख देना उसे फिर से ऐसी परम्परायें ना निभानी पडें
निर्मला कपिला
Collecation by :-HEMENDRA SONI (JINDAGI ANMOL)
9414314337
Sunday, February 8, 2009
खुबसूरत विचार
मैने खुदा से पू खूबसूरत क्या है?
तो वो बोले ::::
खूबसूरत है वो लब जिन पर दूसरों के लिए एक दुआ है
खूबसूरत है वो मुस्कान जो दूसरों की खुशी देख कर खिल जाए
खूबसूरत है वो दिल जो किसी के दुख मे शामिल हो जाए और किसी के प्यार के रंग मे रंग जाए
खूबसूरत है वो जज़बात जो दूसरो की भावनाओं को समझे
खूबसूरत है वो एहसास जिस मे प्यार की मिठास हो
खूबसूरत है वो बातें जिनमे शामिल हों दोस्ती और प्यार की किस्से कहानियाँ
खूबसूरत है वो आँखे जिनमे कितने खूबसूरत ख्वाब समा जाएँ
खूबसूरत है वो आसूँ जो किसी के ग़म मे बह जाएँ
खूबसूरत है वो हाथ जो किसी के लिए मुश्किल के वक्त सहारा बन जाए
खूबसूरत है वो कदम जो अमन और शान्ति का रास्ता तय कर जाएँ
खूबसूरत है वो सोच जिस मे पूरी दुनिया की भलाई का ख्याल
collecation
तो वो बोले ::::
खूबसूरत है वो लब जिन पर दूसरों के लिए एक दुआ है
खूबसूरत है वो मुस्कान जो दूसरों की खुशी देख कर खिल जाए
खूबसूरत है वो दिल जो किसी के दुख मे शामिल हो जाए और किसी के प्यार के रंग मे रंग जाए
खूबसूरत है वो जज़बात जो दूसरो की भावनाओं को समझे
खूबसूरत है वो एहसास जिस मे प्यार की मिठास हो
खूबसूरत है वो बातें जिनमे शामिल हों दोस्ती और प्यार की किस्से कहानियाँ
खूबसूरत है वो आँखे जिनमे कितने खूबसूरत ख्वाब समा जाएँ
खूबसूरत है वो आसूँ जो किसी के ग़म मे बह जाएँ
खूबसूरत है वो हाथ जो किसी के लिए मुश्किल के वक्त सहारा बन जाए
खूबसूरत है वो कदम जो अमन और शान्ति का रास्ता तय कर जाएँ
खूबसूरत है वो सोच जिस मे पूरी दुनिया की भलाई का ख्याल
collecation
Monday, January 26, 2009
Sunday, January 25, 2009
Sunday, January 18, 2009
पेन्सिल स्केच
एकता का सूत्र मोतियों की माला
Sunday, January 4, 2009
कुदरत को मजाक मत समझो
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